एक बार एक जंगल में एक कछुआ और एक खरगोश दोस्त रहते थे। दोनों की अच्छी मित्रता थी और वे हमेशा साथ रहते थे। दोनों के बीच में एक गहरी और आज़ाद दोस्ती थी।
एक दिन, वे एक साथ खेतों के पास घूम रहे थे। धीरे-धीरे धूप तेज होने लगी और कछुए को बहुत गरमी महसूस होने लगी। उसकी खुदाई की ताक़त कमज़ोर हो गई और वह आराम से चलने लगा। वह थक कर बैठ गया और खरगोश से बोला, “मेरे प्यारे दोस्त, मुझे और चलना मुश्किल हो रहा है।”
खरगोश ने देखा कि कछुआ अपने धरती में बड़ी मेहनत से आगे बढ़ रहा था और उसकी मदद करने की कोशिश कर रहा था। खरगोश ने सोचा कि वह अपने तेज़ दौड़ से कछुए को उसकी यात्रा में मदद कर सकता है। इसलिए खरगोश ने प्रस्तावित किया, “मेरे प्यारे दोस्त, तुम ऊपर आ जाओ, मैं तुम्हें अपनी पीठ पर ले जाऊंगा।”
कछुआ खरगोश की मदद से पीठ पर आकर खुद को ऊपर उठा लिया। खरगोश ने जल्दी से दौड़ना शुरू कर दिया। अब कछुए को जल्दी ही अपने गरमी से बचाने की जरूरत नहीं थी। उसकी यात्रा आसान हो गई और वह बड़ी खुशी से अपने दोस्त के साथ चलने लगा।
जब वे थोड़ी दूर चले तो खरगोश को अपने तेज़ दौड़ के कारण थकावट महसूस होने लगी। उसकी साँस तेज़ हो गई थी और वह थक कर बिल्कुल थम गया।
कछुआ ने खरगोश को अपनी पीठ पर ले जाने का आभार व्यक्त किया और बोला, “दोस्त, अब मेरी बारी है तुम्हारी मदद करने की।”
खरगोश ने धन्यवाद दिया और दोनों दोस्त साथ में चलते रहे। उनकी दोस्ती और सहायता ने उन्हें जीवन में हमेशा एक दूसरे के साथ सहयोगी बना दिया और उन्हें हर मुश्किल से पार करने की शक्ति प्रदान की।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि सच्ची मित्रता में हम एक-दूसरे की मदद करने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में हो। असली मित्र हमारे साथ सुख-दुख में खड़े रहते हैं और हमारे साथ अपने समय और सामर्थ्य से सहायता करते हैं।